मानवी नो जुओ तो बस आटलो ईतिहास छे,
जन्म छे ने जीवन छे, विकास छे ने नाश छे.
सामान्य आवी वात ने सौ मानवि समजे छता,
जाम पीघा करे छे तो ये अधुरी प्यास छे.
कल्पनाना महेल चणतो मानवी रेती उपर,
ऐ महेल मा माणीश ऐवो मुर्खने विश्वास छे.
जींदगी नी सडक लांबी मरणनी मंझील सुधी,
आखरे तो मानव ने आटलो ज प्रवास छे.
हाथ खुल्ला करीने अही थी जवु छे ऐकला,
नाम तेनां रही जशे जेनी अमर सुवास छे.
''फुलो वेराणा चोकमां''
{ भक्त कवि श्री त्रापजकर दादा }
संपादक :-राजुभाई भट्ट
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