पारेवडा! तरश्या रहेशो जो,कुवा ने काठडे बेसी रहेशो.
तन तमारा तापे तप्यां छे संकट केटलांक सहेशो?
आ रे कुवानां ऊंडा जळने, उपर आववा न कहेशो .... पारेवडा!
गळा फुलावा ''घुघु'' करीने, आरदा करवा न जाशो;
ऊंडां ऊतरशो ऊडी ऊडीने तो, वासुकीनो छे वासो .... पारेवडा!
काळमिंढ पाणे बांध्यो आ कुवो, गुण हजारो गाशो;
पाणीनु टीपु पाशे नही, तमे हाथेथी हळवां थाशो .... पारेवडा!
नदी सरोवर मीठां पाणीनां, हैयानी ज्यां सुवासो;
ऊडो आशामां बेसी न रहेशो, पाछळथी पस्ताशो .... पारेवडा!
''बंसरी मिठाश भरी''
{ भक्त कवि श्री त्रापजकरदादा }
संपादक:- राजुभाई भट्ट
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